ढाक के पेड़ो के विशाल झुरमुठ के बीच, उबड़ खाबड़ पठार के पथरीले रास्तो के बीच कल कल बहती बेतवा और जमनी नदी के किनारे बसा ओरछा (छिपा हुआ) अपने आप में एक लंबा, रोचक और कठोर इतिहास को समेटे बैठा है, अपनी कहानी कहने को बेताब ! बुंदेलों की भौगोलिक, सांस्कृतिक और राजनितिक बिरासत की एक बानगी है, और मजबूत केंद्र रहा ओरछा, आज मानो थम सा गया हो, अपने आप को राजाओ महाराजो के दौर से बांध लिया हो, जैसे किसी ने सदियो से घडी में चाबी देना बंद कर दिया है। आज भी ओरछा मध्य युगीन काल का झलक देता प्रतीत होता है !
अगर इतिहास को वास्तविक में समझना हो, महसूस करना हो, बदरंग पड गयी दीवारो, महल की छतो, वीरान पड़ चुकी हवेलियों और सैकड़ो सालो पहले की महीन कारीगरी से रुबरु होना है, तो फिर ओरछा से बेहतर, शांत सुरम्य, बेतरतीब बिखरे खंडहरों से बेहतर कोई और हो ही नहीं सकता, चलिए एक चक्कर ओरछा की गलियो से हो आते है !
तुंग ऋषि के मुख एक शब्द निकलता है ओइछा और स्थानीय बुंदेला सरदार रुद्रप्रताप एक भव्य नगर ओरछा की नीव रखते है, जो आगे चल कर न सिर्फ आर्थिक समृद्धि का केंद्र बनता है साथ ही साथ बुंदेलखंडी सांस्कृतिक, कला और सामाजिक द्वंदों का सार केंद्र भी, लगभग ढाई शताब्दियों तक आबाद रहने के बाद (1500 से लेकर 1783 तक) गुमनामियों में खो सा जाता है ओरछा, जब बुन्देलो को अपनी राजधानी टीकमगढ़ ले जानी पड़ी ! राजनीतीक उपेक्षा के बावजूद ओरछा जीवंत रहा लोकाचार में, लोकगीतों में, परम्पराओ में, भव्य महलो में, वीरान पड़े रहस्यमयी छतरियों में और बदरंग पड़ चित्रो में !
ओरछा में बहुत कुछ है जो कही नहीं है, ये इलाका आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के सत्ता का पूरक है, तभी तो यहाँ राम राजा मंदिर उनकी पूजा ‘राजा राम’ (God as King) के रूप में होती है, न की भगवान के रूप में और प्रसाद के रूप में मिलता है राजसी ठाट-बाट का प्रतीक पान की गिलौरी और इत्र में डूब रुई का फाहा, है ना अनोखा प्रसाद और उससे भी अनोखा है भारत के विशालतम मंदिरो में से एक चतुर्भुज मंदिर, जो अपने निर्माण के बाद से ही खाली पड़ा है, जी हां कभी यहाँ मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा ही नहीं हुइ क्योंकि राम जी तो अपने अनन्य भक्त रानी गणेशा के महल में ही सशर्त विराजमान हो चुके थे !
राम सत्ता का जनमानस में प्रभाव ऐसा है कि आज भी आधिकारिक रूप से सारी सुचनाओ का आदान प्रदान राजा राम के नाम से ही होता है और यहाँ तक किसी और को सैल्यूट भी नहीं दी जाती चाहे वो राष्ट्रपति ही क्यों ना हो (स्थानीय पुलिस के मुताविक)| यहाँ ओरछा में भगवान राम नहीं राजा राम की सत्ता है, वास्तविक सत्ता, यहा हर वर राम है और वधु सीता, राजा मधुकर जिनकीे रानी गणेशा राम को अयोध्या से लेकर ओरछा आती है, उनकी भी प्रकृति पिता राजा दशरथ और माँ कौशलया मानी जाती है ! और संयोग भी ऐसा की जिस दिन राजा राम यहाँ सत्ता सँभालते है उसी दिन 1574 ईसवी में तुलसीदास रामचरितमानस लिखना शुरू करते है|
लोकमान्यता और वास्तविकता में गुथा-विधा ओरछा का इतिहास भी कम रोचक और अतुल्य नहीं है, जो आज भी वहा के चप्पे चप्पे में दिख जाएगा, चाहे वो राजा इन्द्रसेन की प्रेयसी और नृत्य संगीत की प्रवीण राय परवीन की यादगार महल हो, बेतवा नदी के एक अतिरिक्त धरा से बने टापूनुमा टीले पे बना प्राचीनतम ‘राजा महल’ हो, बुन्देली-मुगलिया और कुछ कुछ यूरोपियन शैली की झलक लिए जहांगीर महल हो, शीश महल हो, अलग थलग पहाड़ी पे बना लक्ष्मीनारायण मंदिर हो, जिसमे आप को दूर से विशाल ‘उल्लू’ (धन धान्य की देवी लक्ष्मी का वाहन) की झलक लग सकती है, बेतवा के किनारे बने बुंदेला शासको की छतरिया (समाधी) हो, जिसके शिखरो पे गिधो की बहुधा फड़फड़ाहट आपको श्मसान से रिक्तता का एहसास करा देती है अथवा बेतरतीब बिखरे पड़े खंडहरों के अनेको श्रृंखला हो! ये सब आप को मध्य युग की जीवंतता में ले जाने को काफी है!
विशाल जहांगीर महल प्रतापी राजा वीरसिंह देव और बादशाह जहांगीर की दोस्ती की मिशाल है, साथ ही साथ भारत में मुग़ल शासन की रुख मोड़ने वाली राजनितिक उथल पुथल को भी इंगित करती है! वीरसिंह ने अबुल फज़ल को रास्ते से हटा कर शाहजादे सलीम की ताजपोशी का मार्ग प्रशस्त करते है, और उसी का यादगार बनता है जहांगीर महल! कुछ ही दिनों में समय पलटता है, शाहजहाँ और ओरछा के शासक जुझार सिंह की कूटनीति और धोखे के भेट चढ़ते है, हरफनमौला युवराज और वीरसिंह देव के छोटे बेटे हरदौल, जिनकी पहचान और शहादत को आज भी बुंदेला संस्कृति ने सहेज के रखा है, आज भी बुन्देलखंड में लड़की की शादी का पहला नेवता/आमंत्रण हरदौल को दिया जाता है और शादी के सारे चिंताओं का भार भी तो उन्ही के ऊपर जो होता है, हरदौल को याद में प्रचलित बुदेलखंडी लोकगीत , इस क्षेत्र में शादी में आज भी स्त्रियां ये गाना गा कर वीर हरदौल को याद करती है !
आना आना हज़ारी हरदौल!
तिम्हारे बले व्याह रचे !!
महलो और मंदिरों की दिवारे और छते अपनी खास चित्रकारी, नक्कासी और उमदा बारीक़ कलाकारी की मिशाल है! जहांगीर महल के प्रवेश में दोनों तरफ स्वागत की मुद्रा में खड़े लाल पत्थर के जीवंत हाथी उस दौर की याद दिलाने के लिए काफी है जब बादशाह जहांगीर अपने एकदिनी प्रवास के लिए इस मुख्य दिवार से गुजरे होंगे ! पतले गलियारे से अचानक फैले आँगन में खुलता रास्ता, खुले नीले आसमान के बीच बहुमंजिला इमारतों के गुम्बदों और झरोखो की एक श्रृंखला महल को एक सुनियोजित समरूपता प्रदान करती है, वही छतो और दीवारो पे बुन्देला शैली की चित्रकारी (मुग़ल चित्रकला से भिन्न, कुछ कुछ राजस्थानी शैली से प्रभावित) जिसका रंग अब धुंधला पड़ गया है, आपको मन्त्र मुग्ध कर के ही छोड़ती है, वही गाहे बगाहे turquoise tile की पट्टी ओरछा की समृद्धि की द्योतक मालूम पड़ती है ! दीवाल और छत की चित्रकारी इतिहास, धर्म, लोककथा, राजकाज के विषयो को दर्शाती है….जिसमे प्रमुख रूप से राम, कृष्ण का जीवन चरित, रामायण, महाभारत, गीता, दशावतार आदि प्रसंगों का चित्रण है साथ ही साथ समसामयिक राजनितिक विषय जैसे युद्ध, जिसमे अंग्रेजो के साथ झांसी की लड़ाई, राजाओ के शिकार और अनके जीव-जन्तुओ के जीवंत चित्र शामिल है, एक तरीके से गतिमान चित्रावली जो मध्ययुगीन कालखंड का सूक्ष्म विवरण देती प्रतीत होती है !
इतना कुछ है घूमने को ओरछा में पर किले के अंदर शाम का साउंड और लाइट शो नहीं देखा तो फिर अधूरा सा रह जाएगा ओरछा का ये सफ़र, ऐसा मेरा मानना है! ओरछा की पूरी कहानी अमिताभ बच्चन की धीर गंभीर आवाज़ में साथ में ध्वनि और दृश्य प्रकाश का समायोजित प्रदर्शन, वो भी किले के खंडहर में, रात अँधेरे में, ओरछा भ्रमण को रहस्यमयी पूर्णता प्रदान करती है !
ओरछा: एक झलक
आना जाना: डेल्ही भोपाल मुख्यमार्ग पे झांसी से 17 कि.मी.
समय: घुमक्कडों के लिए कभी भी, पर पर्यटको के लिए मार्च-सितम्बर के बीच कभी भी
निवास: कसबनुमा शहर पर रहने की उचित व्यस्था साथ में खाने के ढेरो होटल्स
दर्शनीय: मंदिर श्रृंखला (रामराजा मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, चतुर्भुज मंदिर), राजप्रसाद (राजमहल, राय प्रवीण महल, जहांगीर महल, शीशमहल) म्यूजियम, राजाओ की छतरिया, हरदौल का बैठका और खंडहरों की एक समृद्ध श्रृंखला
डॉ. कुशाग्र राजेंद्र
यायावर या खानाबदोश तो नहीं पर घुमक्कड़ी प्रवृति के, सब कुछ घूम लेने के मौके की तलाश में रहने वाले युवा अध्येता और पेशे से पर्यावरण विज्ञानी! बिहार-नेपाल सीमा के पास गाँव भतनहीया में जन्मे, कालेज तक की शिक्षा स्थानीय जिला स्कूल और मुंशी सिंह महाविद्यालय, मोतिहारी, पूर्वी चंपारण से प्राप्त करने के बाद एम.फिल, पीएचडी तक की शिक्षा पर्यावरण विज्ञान विद्यालय, जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (JNU)), नई दिल्ली से प्राप्त, सम्प्रति एमिटी यूनिवर्सिटी हरियाणा में शिक्षण और अनुसन्धान में संलग्न!
संपर्क: mekushagra@gmail.com , #अहम्_घुमक्कड़ी